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राशन-कार्ड. आजादी के 72 वर्ष बाद कि दुरदशा

राशन
राशन..इक हाकिकत नयी भारत कि

माँझी ददा बड़े खुश थे कि अब जब सबकुछ 'आनलाइन' हो जायेगा तो डीलरवा उससे कुछ ठग नहीं पायेगा । हालाँकि बावन साल के माँझी ददा को 'आनलाइन' का मतलब पता नहीं था , पर बगल के डमरूवा ने बताया था कि "ये ऐसी व्यवस्था हैं जिससे सरकार सीधे आप से जुड़ी रहेगी और आपको कितना चावल, दाल और किरोसीन मिलता हैं इसकी खबर सीधे सरकार को रहेगी, अब डीलर लोग कोई गलत धंधेबाजी नहीं कर पायेगा।"
हालाँकि ददा हमेशा से सोनिया मैंया पर ही भरोसा करते थे पर इस बार उन्होंने मोदीया जी को चुना था और इस फैसला का अब उन्हें अफसोस भी नहीं होता था। मोदीजी के आने से ही उन्हें अहसास हो पाया था कि वे संसार के कितने श्रेष्ठ जीव हैं...
हाँ ये बात तो हैं कि ये पंद्रह-बीस दिन की वो दौड़ा-दौड़ी , अपने आधार-कार्ड को अपने राशन-कार्ड से जोड़ने के चक्कर मे वे बहुत परेशान हुए , सड़क के हर मोड़ पर वो रूक कर मोदीजी को कोसते थे , आधार से राशन को जोड़ने वाले को मने-मन रोज गरियाते थे । पंद्रह-बीस दिन की भागा-भागी में पिछले दो महीने के जमापूँजी हजार रुपये हाथ से निकल भी गये थे पर ये सब काम हो जाने के बाद वे सच में बहुत खूश थे। उन्हें खुशी थी कि डीलर अब उनका शोषण नहीं कर पायेगा, अब अपना आधा अधिकार वो डीलर को नहीं देंगे , अब वो पूरा का पूरा राशन लेंगे ।
ये आजादी की खुशी थी । शोषण तब भी होता था अब भी होता हैं , सैंतालीस में भारत आजाद हो गया और अब सत्रह तक में धीरे-धीरे भारत के लोग भी आजाद हो ही रहे है । सच बात है , भारत कितने वर्ष गुलाम रहा , इसके स्वतंत्रता में कितना समय लगा इसकी जानकारी हमारे पास हैं पर भारत के लोग कब तक में पूर्णतः आजाद हो जाएंगे ? इसकी जानकारी शायद ही किसी के पास हो !

खैर माँझी ददा बहुत खूश थे और आज जनप्रणाली दुकान में वितरण भी होना था,माँझी ददा ने इस बार दो झोले लिए हुए थे क्योंकि उन्हें मालूम था कि इस बार डीलर उनका आधा चावल नहीं ले पायेगा , अपना अधिकार का सारा चावल इस बार वे खुद लेंगे । बीपीएल कार्ड , आधार कार्ड लेकर वे नंगे पाँव ही निकल पड़े थे । चप्पल तो आधार-कार्ड को राशन से जुड़वाने में ही घिस कर पीस गया था ।

माँझी ददा राशन दुकान में लाइन में लगे हुए थे । लोग दो-दो झोली में राशन ले जा रहे थे , माँझी ददा बड़े खुश थे सबको पूरा अनाज ले जाते हुए देखकर। अब दो ही आदमी रह गये थे माँझी ददा के आगे , हालाँकि माँझी ददा की लंबाई बहुत ज्यादा नहीं थी फिर भी वे इधर-उधर झाँककर देख रहे थे कि इस बार राशन कैसे दिया जा रहा है , उन्होंने देखा कि डीलरबाबू आदमी का हाथ पकड़कर उनका अँगूठा किसी हरे रंग की मशीन पर रखते हैं , बस हो जाता हैं और उनका राशन दे दिया जाता हैं । कितना आसान प्रक्रिया हैं अब कोई झोलझाल नहीं उन्होंने मन ही मन सोचा । मोदीया को वोट देकर उनकी आत्मा भी गौरवान्वित महसूस कर रही थी । आजाद भारत में वे आजाद महसूस कर रहे थे ।
डीलर की आवाज ने उनका ध्यान खींचा - "लाइए चचा अपना अँगूठा इधर लाइए ।" माँझी ददा ने अपना हाथ बढ़ाकर अँगूठा मशीन पर रख दिया । कुछ ही संकेड में डीलर ने हाथ उठाने का इशारा किया , माँझी ददा ने मशीन से हाथ हटा लिया । माँझी ददा खुश थे कि अब उनको राशन मिल जायेगा पर डीलर ने कहा - "फिर से अँगूठा लगाइए चचा आपका अँगूली का निशान मैच नहीं कर रहा है ।" माँझी ददा ने फिर अँगूठा लगाया पर इस बार भी यही हुआ , माँझी ददा थोड़े परेशान हुए , डीलर ने चार-पाँच बार प्रयास करवाया पर हर बार यही होता ।

माँझी ददा के पीछे लाइन में लगे हुए जवान लौंडे ने पूछा - "क्या बात है डीलर चचा, क्या हुआ ?"
डीलर अपना उँगली माथा में खुजाते हुए बोले- "क्या बताये भैया , ये चचा का उँगलियाँ मैच ही नहीं कर रहा है , चचा का राशन-कार्ड दिखाई ही नहीं दे रहा है कंप्यूटर में , अब कैसे दे इनको राशन ?"
सरकार के भरोसे पढ़-लिख कर बड़ा हुआ पूछने वाला जवान लड़का को , ये कंप्यूटर , आधार , उँगली , निशान के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी और साथ ही ये सोच कर वो सहम गया कि कहीं मेरा भी अँगूठा मैच नहीं किया तो ? इसलिए वो चुप ही रहा । डीलर ने पहले जवान लड़के को देखा फिर माँझी ददा की ओर देखकर पूछा - "आधार-लिंक हो गया था न ?"

माँझी ददा तो बात को पूरी तरह समझ नहीं पाये , पर जितना समझ पाये उतना ही का उन्होंने उत्तर दिया - "हाँ , हाँ मालिक करवा लिये थे।"
"ओह तब तो ठीक हैं पर पता नहीं क्या दिक्कत है कि आपका हो नहीं पा रहा है , आप ऐसा कीजिए कि आप बाहर में बैठिये , हम सबको राशन देकर आपका अंतिम में एक बार और प्रयास कर लेंगे ।" डीलर ने लंबी गहरी साँस लेते हुए कहा ।
माँझी ददा दो घंटे बैठे रहे और अंत में डीलर ने एक बार और प्रयास किया पर कोई परिणाम न निकला । डीलर ने सलाह दी - "देखिए चचा , ये तो हो नहीं पा रहा है आप बीडीओबाबु के पास शिकायत कीजिएगा , पंद्रह-बीस दिन में ठीक हो जाएगा।"
माँझी ददा बहुत निराश हुए , हारे हुए मन से वो घर को आए । उनको कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो गया ? उनको लग रहा था कि पहले डीलर आधा अनाज तो देता था पर ये आधार के चक्कर मे अब वो भी नहीं मिल पाया। उन्होंने सोचा कि अब कल बीडीओ साहब के पास जाएंगे।
दूसरे दिन वे ब्लॉक पहुँचे , दो-तीन घंटे बाद जब वे बीडीओ साहब से मिले तो बीडीओ सर ने कहा - "हाँ चचा जी , बहुत लोगों के साथ ये सब गड़बड़ी हो रहा है , आप अपना आधार-कार्ड का कॉपी, राशन-कार्ड का कॉपी के साथ एक आवेदन लिख कर बगल वाले कमरे मे जमा कर दीजिएगा ।"

माँझी ददा ने खुद के अंदर उम्मीद जगाने के नीयत से पूछा - "सर, ये ठीक तो हो जायेगा न ?" बीडीओ बाबू ने सर हिलाते हुए 'हुंह' कहा । हालाँकि ये शब्द माँझी ददा में उम्मीद जगाने के लिए पर्याप्त नहीं था पर फिर भी माँझी ददा ने इसी शब्द से अपने अंदर के उम्मीद को जिंदा रखा। हजारों रुपये की तनख्वाह पाने वाले बीडीओ सर जिंदा रहने की इस आशा की कीमत को नहीं समझ सकते थे । जैसे-तैसे माँझी ददा ने आवेदन लिखवाया और जमा कर आए। वे नहीं जानते थे कि इसका परिणाम कुछ होगा भी या नहीं, पर अँधेरे में रहने वाले को अँधेरे में ही तीर चलाना पड़ता है ।
बावन साल के माँझी ददा घर पर ही थे , कमजोर शरीर होने के वजह से कोई काम पर नहीं ले जाता था । पाँच दिन हो गए थे बीडीओ ऑफिस से आए हुए पर कोई परिणाम नहीं निकल पा रहा था । घर में पंद्रह-बीस दिन का राशन था , माँझी ददा बचपन से ही 'माड़-भात' के आदि थे । 'माड़-भात' के साथ आलू की चटनी और नमक मिला कर खाया करते थे । बस कभी-कभी किस्मत या सरकार मेहरबान होती तो इसमें दाल और सब्जी भी आ ही जाता था । किस्मत की मेहरबानी का मतलब काम ही होता था और सरकार की मेहरबानी का कोई मतलब ही नहीं होता था । इनके लिए लड़ने वाले इनलोगो के सामने इसे 'गरीबों का हक' बताते थे और दूसरों के सामने 'गरीबों का भीख' ।
अगस्त के साथ-साथ माँझी ददा का राशन भी खत्म होने को था । माँझी ददा को पता चला कि राशन मिल रहा है । माँझी ददा अपना राशन-कार्ड, आधार-कार्ड और पुराने कागजात लेकर डीलर के पास पहुँचे । पिछले बार राशन न मिल पाने की वजह से डीलर को माँझी ददा के प्रति थोड़ी सहानुभूति थी । डीलर ने सबसे पहले माँझी ददा से ही पूछा - "आपका काम हुआ ?"

"सरकारी दफ्तर गये थे मालिक, आवेदन देकर आए हैं , पता नहीं कुछ हुआ है कि नहीं ?" माँझी ददा ने बुझे और धीमे आवाज में उतर दिया।
"आइये, जाँच कर लेते हैं आपका हुआ है कि नहीं।" माँझी ददा ने अँगूठा लगाया पर इस बार भी वही हुआ। डीलर ने उँगली और मशीन साफ करवा कर दो-तीन बार प्रयास करवाया पर कोई परिणाम नहीं आया।
"अच्छा इससे नहीं हो रहा है तो राशन-कार्ड से ही राशन दे दीजिए मालिक।" माँझी ददा ने दबे स्वर में निवेदन किया था पर डीलर को यह आदेश लगा , आखिरकार कम औकात वाले लोग आदेश कैसे दे सकते हैं ? इनका तो निवेदन करने का भी अधिकार नहीं होना चाहिए । हमेशा से चुप रहते हैं तो अब भी चुप ही रहना चाहिए। डीलर ने मुँह बनाते हुए माँझी ददा को देखा और कड़क शब्दों में कहा - "ऐसे कैसे दे दें चचा ? हमको अंदर करवाना चाहते हैं क्या ? जो नियम हैं उसी हिसाब से हम देंगे नहीं तो नहीं देंगे।"

शब्दों में आए कड़वाहट को माँझी ददा पी गये और मिँमयाते शब्दों में कहा- "मालिक ! घर में अन्न का एक भी दाना नहीं ,हमारा राशन कार्ड से ही हमको राशन दे दीजिए न मालिक।"
'तर्क-वितर्क और वो भी हम से , साले औकात तो मुट्ठी भर का हैं नहीं और चले हैं अनाज लेने झोलीभर' डीलर ने भौंवे ऊपर कर के माँझी ददा को देखते हुए सोचा । डीलर को एक बुढुऊ का यूँ बकबकाना बुरा लग रहा था।
उसने पूरी तरह सख्त लफ्जों में कहा - "जैसा नियम हैं हम वैसा ही पालन करेंगे , हमारा समय खराब मत कीजिए , चलिए जाइये यहाँ से ,आधार-कार्ड लिंक हो जाएगा तब आईयेगा यहाँ। चलिए जाइये यहाँ से , कौन हैं जी इसके पीछे चलो आगे आओ।"
"
पर मालिक...." माँझी ददा इस बार वाक्य पूरा नहीं कर पाये थे क्योंकि उससे पहले ही डीलर कुर्सी पर खड़ा हो गया था , "अच्छा समझा, तुम खाओगे कैसे न ? रूको अभी समझाता हूँ ।" ये कहते हुए वो अंदर चले गए ,वे आए तब उनकी मुट्ठी बंद थी , उन्होंने आते ही अपनी मुट्ठी माँझी ददा के झोले में लाकर खोल दी, मुट्ठी में चावल थी , "इसी तरह हर घर के सामने जाकर कीजिएगा , महीने भर के चावल का इंतजाम हो जाएगा, अब चलिये जाइये यहाँ से।" यह कहते हुए डीलर ने मुँह ऐंठ लिया।
माँझी ददा अब यहाँ नहीं रूक सकते थे , अब उनका रुकना संभव था ही नहीं । वे सीधा हिलते-डुलते घर चले आए , घर में देखा राशन सही में पूरी तरह खत्म हो चुका था , चावल का एक दाना भी नहीं था घर में और जो रूपये थे वो आधार, राशन, दफ्तर , आवेदन के चक्कर मे हवा हो चुके थे।
किसी तरह शाम तक का वक्त गुजारा , पर पेट में आग लग चुकी थीं और ये आग सिर्फ पानी से बुझ पाना संभव न था । उन्होंने सोचा कि काम तो कोई देगा नहीं इसलिए कल से भीख माँगा करेंगे पर अन्दर से वो ये बात जानते थे कि वो ये नहीं कर पाएँगे क्योंकि उनकी आत्मा ये करने नहीं देगी । जब पेट खाली हो तो दिमाग भी खाली हो जाता हैं , माँझी ददा ज्यादा सोच नहीं पाये । वे ऐसे ही खाली पेट सो गये ।

समय किसी के लिए नहीं रूकता बस खाली पेट वालों के लिए समय कुछ लंबा हो जाता हैं । पाँच दिन बीत गये थे । इन पाँच दिन के हर-एक पल का सामना माँझी ददा ने किया था । पहले से शरीर कमजोर था भूख ने और ज्यादा कमजोर कर दिया था । अब तो बाहर भी जाने की ताकत नहीं बची थी बस कोई अनजानी शक्ति थी जो साँस चला रही थीं पर अन्दर में शक्ति न रहे तो अनजानी शक्ति भी कोई काम नहीं करती । वे खटिया में पड़े हुए चारों ओर देख रहे थे । वे आँखें दुनिया की कड़वी सच्चाई जानती थी पर फिर भी उन आँखों मे उम्मीद थी , चमत्कार की उम्मीद ।
हम सब जानते हैं कि हमें आखिरकार मरना ही हैं पर फिर भी हम आँखों मे उम्मीद पाले रखते हैं , क्योंकि उम्मीद से मन बहल तो जाता हैं । माँझी ददा भी मन बहला रहे थे , वे नहीं जानते थे कि आने वाला पल में क्या होगा पर इतना जरूर जानते थे कि आने वाला पल उनके अनुरूप नहीं होगा । अब वे समझ रहे थे कि उनकी आजादी बिल्कुल मुर्गे की आजादी जैसी है , जो बाड़े से निकाले जाने पर ये सोच कर खुश होता हैं कि वो अब आजाद होने वाला हैं पर असलियत ये होता हैं कि अब वो हलाल होने वाला हैं ।

माँझी ददा शायद कुछ समझ गये थे , उन्होंने मन में राम को याद किया , मन में मर्यादापुरुषोत्तम राम की छवि भी उभरी पर मुँह से राम का नाम न आ पाया । मुँह से आवाज आयी "भात...भात...भात..." वे तीन बार सिर्फ भात ही बोल पाये और उसके बाद वे कुछ भी बोल न पाये ।
राम आजकल शायद , शायद भात हो गया है ।



#विकास
#कथा
#राशन
     """""""  बिनोद कुशवाहा::::::::::

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