ये इशक का जो रोग होता है न सही मायने में साला चूतियापा होता है राहें अलग थीं। मंजिल भी अलग थी। दोनों को अपनी मंजिलों के बारे में बखूबी पता था। फिर भी न जाने क्या हो गया दोनों को। ऋषभ के स्टूडियो पर कस्टमर बनकर पहुंची आयशा कब से उसे जानू कहने लगी पता ही नहीं चला...। दरअसल, आयशा दूसरे मजहब के ऋषभ को बेइंतेहां चाहती थी। ऋषभ भी उसे टूटकर चाहता था। ऋषभ गांव के ही चौराहे पर एक फोटो स्टूडियो चलाता है। ये इशक का जो रोग होता है न सही मायने में साला चूतियापा होता है। चूतियापा इसलिए कि ऋषभ के प्यार के चक्कर में ही उसकी आजादी छिन गई। वह बंदिशों में रहने लगीं। उसकी पढ़ाई की भी मां-भैन कर दी गई। इसके बाद तो इशक ने ऐसा दंभ भरा की ससुरा आयशा के दिल में इशक मानों कुलाचें मार रहा हो। तभी तो खेतों में फेंका जाने वाले खाद उसने चीनी की तरह मुट्ठी में लिया और खाकर गटक लिया एक लोटा पानी। अब यहीं से बंदिशों के जंजीरों जकड़ी आयशा की पगलैती शुरू होती है। गले में ब्लेड मारकर ऋषभ लिख डाला। दो बार तो मौत के मुंह से बची। मानों यमराज भी उसे ...
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