" चंदा का चाँद-1"
लो भई आ गया तुम्हारा गाँव,पास मे बैठे एक बुज़ुर्ग ने कहा,मैने लंबी साँस भरते हुए अपना बैग उठाया और बस से ऊतर लिया,दो-चार क़दम ही चला था कि कानों मे आवाज़ बड़ी--बाबू,ओ बाबू लाओ बैग मुझे दे दो......!!
तुम? मैने हैरानी से कहा,तुम यहाँ क्या कर रही हो,
बस आ गयी थी पानी भरने,वो क्या है ना बाबू गाँव के बीच मे जो सरपंच वाली पानी की टंकी है ना आज ऊ मे पानी ना आयो तो हमार अम्मा से कह दिए की बस सड़क वाली टंकी से पानी लाएँगे..........,ये सारी बात चंदा एक ही साँस मे बोल गई,
पर.....प ररर......वो तुम्हार घड़ा????
अब तुम चुप रहो और ये बैग हमे दे दो,सफ़र मा थक गये होगे,घर चलो और आराम करो,
मैने मुस्कुराते हुए बैग चंदा को दे दिया व चलते-चलते उसे छेड़ने के लिए कुछ पंक्तियाँ गुनगुनाई--
"बड़ा ही प्यार का मौसम है
सुहानी रूत जो छाई है
बहाना कर के "अम्मा" से
"चंदा" मिलने जो आई है"
बहा...ना.......बहाना नहीं हम सच कह रहे है,वहाँ सरपंच वाली टंकी मे वो पानी......!!
हम तुम्हार लिए नही आए है,समझे,बिलायत जाकर शायरी सीख ली,बड़े शायर हो गए हो
दिल्ली बिलायत नही चंदा,हमारे देश मे ही एक बड़ा शहर है,वो भारत की राजधा.....नी
बस-बस हमे मत सिखाओ ये ज्ञान की बाते..!!
चंदा की ये बात सुनकर मेरे मन मे छिपी उसकी हटखेली करती ऐसी बहुत सी बातों का सागर उमड़ आया और मै अतीत मे डूब गया,जब मै पाँचवी मे गाँव के स्कूल मे जाता था,छुट्टी होने पर हर रोज चंदा मुझे एक अभिभावक की तरह रिसिव करने स्कूल आती थी,बड़ा अच्छा लगता था,नंगे पैर वाली सांवली सी काया व गोल-मटोल से चेहरे पर खिलखिलाती हँसी देखकर,मैं दौड़ कर चंदा के गले लग जाता था,जैसे दामा(सुदामा) अपने श्याम से मिलता था,फिर हमे वो बणी(हल्का-फुल्का गाँव का जंगल)के रस्ते ले जाती और बेरों की बड़बेरी के पास जाकर कहती तू पीछे हट जा चाँद मैं पत्थर उछाल रही हूँ,आज तुम्हें लाल-चिट बेर खिलाऊँगी,
(चंदा बचपन मे हमे चाँद बुलाया करती,उसी ने चाँद नामकरण किया था मेरा,वो सबको कहती फिरती की मै चाँद की चंदा और ये चंदा का चाँद........!!!)
बेर खाते-खाते रास्ते मे मै पूछता चंदा तुमने चोथी के बाद स्कूल क्यो छोड़ दिया,तुम थी तो क्लास मे मेरा मन लग जाता था,फिर आ जाओ ना स्कूल,मान लो हमारी आ जाओ स्कूल,और मै बालहठी की तरह सारे रास्ते यही रट लगाए रहता,
अब क्या करे ये चदां?तू ही बता चाँद..!बुआ के यहाँ रहती हूँ तो उनका कहना मानना तो पडेगा,बुआ हमें बेटी जैसा प्यार करती हैं और हम उन्हे अम्मा जैसा,बुआ नही चाहती की मै स्कूल जाऊँ,
हम कहेंगे कांता ताई को,हमार बात मान लेगी,नही तो बाबूजी और अम्मा को भेजेंगे,पर इस बार दाख़िले के बख्त तुम्हारा स्कूल जाना पक्का करवा के छोड़ेंगे.....!!!
चंदा:जल्दी चल चाँद बहुत देर हो गई,अम्मा मारेगी,
मैने कह दिया ना अम्मा हम चंदा के बग़ैर स्कूल नहीं जाएँगे,तो बस नही जाएँगे,आप कांता ताई से बात कर लो और चंदा को भी स्कूल जाने की छूट दिलवा दो........चंदा स्कूल जाएगी तो ही ये चाँद जाएगा,
पगलाए गये हो मुआ जो इस ऊमरीया मे ही यो रोग पाल लियो हो---दादी ने माथे की त्योरियाँ चढ़ाते हुए कहा
अम्मा:आप चुप रहेगी,हम हमार लल्ला को आप ही समझा देगे
दादी:का समझाना है,ऊ कलमुही चंदा ने राम जाने का टूना-टोटका किया है हमार बाबू पर,वो तो पाँच बरस बड़ी है और हमार बबुआ मे समझ नाक के बाल बराबर है,
इतने मे बाबूजी ख़ुशी से दौड़ते हुए अंदर आते है,
अरे बाबू ,ओ बाबू ई देखो तुम्हार मामा जी का ख़त आया है,उन्हे बैंक की तरफ़ से रहने के लिए क्वार्टर मिल गया है,कह रहे हैं कल ही अमित को ले आओ यहाँ,बाबू शहर मे पढ़ोगे तो दुई अक्षर इंया से ज़्यादा सीखोगे और फिर नौकरी भी अच्छी मिलेगी,हम तुम्हें कल ही लेकर चलेंगे शहर.......!!!
अरी भागवान सुनती हो,कहाँ हरदम ई छड़ी हाथ में उठाए मास्टरनी बनी फिरती हो,रहने दो ऐसो भाग्य ना है तुम्हारो,तुहार तो कर्म फूटे थे पहिले से,साथ-साथ हमार भी फोड़ दिए यहाँ आकर,जाओ जाकर कुछ बना दो कल के लिए,साले साहब के यहाँ जा रहे हैं,ख़ाली हाथ गये तो जगहँसाई होगी......!!!
ओ..हो....हो बड़े आए लफटिडेन्ट!! जैसे हमार आने से पहले तुम्हारे यहाँ राजशाही चलती थी ना,जो हमने आते ही सबअहु चौपट कर दिया,
और....औ..र.......तुम्हें हमार ई छड़ी से का मतलब,हमार छड़ी हम जब चाहे जैसे चाहे घुमाए,तुम कौन होते हो रोकने वाले......हाँ!!
और महारानी है ई घर की,काहे पदवी घटाए रहे हो मास्टरनी कहकर......आज तो कह दिये हो आगे...........!!!
अरी हो महारानी काहे जगत सर पर उठाए रखो है,ज़रा साँस ले ले और ऊ हमार आँख मे दवाई डाल भीतर से लाकर,क्या बच्चों की तरह लड़ रही है,दस बरस के बेटे की माँ होई गयी हो बचपना अब तक रही रहयो स....!!
तुम भी अम्मा हर बख्त अपने ही सुपुत्र की पैरवी करती हो,हम कौन होते है यहाँ......!!
अचानक चंदा ने हाथ पकड़ा और मुझे झकझोर कर कहा"बाबू ,औ बाबू कहाँ सो गये का चलते चलते,आ गया घर आगे कहाँ जा रहे थे,ई तो हम थे जो पकड़ लिया वरना कहीं ओर ही जमावड़ा लगाते.......!!
मै सहसा अतीत से निकल कर वर्तमान मे आया तो पता चला जिस चौक मे खड़ा हूँ अब वो पक्का हो गया है,सामने मेरे घर के दरवाज़े पर कुछ सफ़ेद चाक से लिख रखा है,मै कुछ पूछने की चेष्टा करता इस से पहले चंदा ही बोल पड़ी,क्या देख रहे हो आगनबाड़ी वाली बहन जी लिख कर गयी है ई सब,आई थी पूछने की तोहार घर मे कितने बच्चे है...!!
घर पर ताला देखकर मैने चंदा की तरफ़ गर्दन घुमाई,फिर कुछ पूछने से पहले वो बोल पड़ी,अम्मा बाबा दोनो खेत गए है.....!!
खेत......??मैने आश्चर्य से फिर चंदा को देखा,इस बार चंदा ने बोलने की बजाए ऐसे भाव चेहरे पर प्रदृशित किये मानो इशारों मे मुझसे ही पूछ रही हो तुम ही बताओ क्यो गये अम्मा बाबा खेत मे???
मैने चंदा को मौन देख पहले बोलने का निर्णय लिया,चंदा बता तो सही.....!!
चंदा:दोनो खेत मे बाजरा काटने गए है,
बाजरा काटने गये है.....???और तू मुझे यहाँ ले आई,मै अभी जाता हूँ उनकी मदद के लिए,मै ज्यों ही चला चंदा ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली "रूक जाओ चाँद"
(रूक जाओ चाँद--ये शब्द सुनते ही मेरे क़दम आप ही स्थिल पड़ गए,नब्ज़ रूक सी गई,दिल जौर-जौर से धड़कने लगा,आँखो के आगे सहसा ही एक बस,एक पीपल का पेड़ ,पास से गुज़रती कुछ बकरियाँ ,स्कूल जाते छोटे-छोटे बच्चे की आवाज़ें,व बार-बार सीटी बजाते हुए व्यक्ति की काल्पनिक प्रतीमा उभर आई,पर वह काल्पनिक होते हुए भी ऐसी मालूम पड़ रही है जैसे कालचक्र की गति उलटी हो गई हो और मै कालगति के प्रभाव से कालांतर मे उस जगह जा पहुँचा हूँ जहाँ ये सारी घटनाएँ मेरे चारों तरफ़ सजीव रूप से अभी चल रही है,इन सब के बीच कोई मुझे बार-बार यही वाक्य बोल रहा है--रूक जाओ चाँद,रूक जाओ चाँद,मत जाओ चाँद......!!
इस आवाज ने मुझे अंदर तक क्षीण कर दिया है और मै दीमाग व आखो पर जौर देकर उस आवाज को पहचानने की कोशिश कर रहा हूँ,अंत मे मुझे एक साँवली सी,खुले बालों वाली,जिसका दुपट्टा शायद कही रास्ते मे गिर गय होगा,नंगे पैर मेरी तरफ़ दौड़ती हुई प्रतीत होती है,उसके पास आने पर मेरे मूह से सहसा कुछ शब्द निकलते है"हाँ चंदा मै नही जाऊँगा,तुम्हें छोड कर नही जाऊँगा......!!
इस बार फिर चंदा ने मुझे झकझोर कर उस अतीत की गहरी नींद से जगाया,बाबू...बाबू?
क्या हुआ?
मैने कहा कुछ भी तो नहीं,फिर चंदा गहरे विचार मे डूब कर सहसा पूछ बैठी तब से हमार नाम लेकर काहे शौक़ मचा रहे थे,हम इतनी देर से तुम्हें पुकार रहे थे सुन काहे नही रहे थे हमार बात,
थोड़ी देर दोनो मे ख़ामोशी छा जाती है....!!
चदा: अम्मा कह कर गयी है,बाबू आए तो ये घर की चाबी दे देना और कहना शाम होने तक घर मे ही आराम करे,हम पहर ढलने से पहले आ जाएँगे,
चंदा घर का दरवाज़ा खोलती है,मै अब भी आवाक सा गली मे ही खड़ा रहता हूँ,चदां अदर जौर से चिल्लाती है"कौनो गौरी मैम ने टूना-टोटका कर दिया का,जो ये अजीब-अजीब हरकतें कर रहे हो,अब घर मे भी तुम्हें प्रेत दिखाई देत है का.....!!
हाँ एक प्रेत तो दिखाई........ईईईई...!!
वाक्य बीच मे ही छोड मैने चंदा को आलिंगन मे भरना चाहा........!!!
चंदा मुझे अपनी ओर आता देख पूर्वानुमान लगाकर,मुझे अँगूठा दिखाती हुई आँगन मे भाग गई,और दोड़ती-दौड़ती एक ही साँस मे बोली ई प्रेत तुम्हारे हाथ नही आने वाला,गाँव के बेशक हो पर आदमी की नियत भंलीभांति जान लेते है,ये कहकर चंदा ने हँसते हुए अपना दुपट्टा संभाला जो शायद हमारी धिगाँ-मस्ती मे उलट-पुलट गया था.......!!जरा मन पर क़ाबू रखो,इतने रसिक मत बने.....चंदा आज फिर मुझे एक अभिभावक की तरह समझा रही थी,चंदा की ये हरकत देखकर मेरे मूह से अनायास ही कुछ पंक्तियाँ निकल आई---
मालूम है मुझे हद अपनी दोस्ती की ज़ालिम
बस तू अपनी मटकती आँखो को संभाल ले
खुदा कसम नहीं करने दूँगा दिल को बग़ावत
बस तू अपने इस गुलाबी दुपट्टे को सवार ले
जब भी देखता हूँ तुझे,आँखे बेईमान हो जाती है
बेईमानी दिल मे न आने दूँगा बस तू इतना जान ले
" चंदा का चाँद-1"
लो भई आ गया तुम्हारा गाँव,पास मे बैठे एक बुज़ुर्ग ने कहा,
मैने लंबी साँस भरते हुए अपना बैग उठाया और बस से ऊतर लिया,दो-चार क़दम ही चला था कि कानों मे आवाज़ बड़ी--बाबू,ओ बाबू लाओ बैग मुझे दे दो......!!
तुम? मैने हैरानी से कहा,तुम यहाँ क्या कर रही हो,
बस आ गयी थी पानी भरने,वो क्या है ना बाबू गाँव के बीच मे जो सरपंच वाली पानी की टंकी है ना आज ऊ मे पानी ना आयो तो हमार अम्मा से कह दिए की बस सड़क वाली टंकी से पानी लाएँगे..........,ये सारी बात चंदा एक ही साँस मे बोल गई,
पर.....प ररर......वो तुम्हार घड़ा????
अब तुम चुप रहो और ये बैग हमे दे दो,सफ़र मा थक गये होगे,घर चलो और आराम करो,
मैने मुस्कुराते हुए बैग चंदा को दे दिया व चलते-चलते उसे छेड़ने के लिए कुछ पंक्तियाँ गुनगुनाई--
"बड़ा ही प्यार का मौसम है
सुहानी रूत जो छाई है
बहाना कर के "अम्मा" से
"चंदा" मिलने जो आई है"
बहा...ना.......बहाना नहीं हम सच कह रहे है,वहाँ सरपंच वाली टंकी मे वो पानी......!!
हम तुम्हार लिए नही आए है,समझे,बिलायत जाकर शायरी सीख ली,बड़े शायर हो गए हो
दिल्ली बिलायत नही चंदा,हमारे देश मे ही एक बड़ा शहर है,वो भारत की राजधा.....नी
बस-बस हमे मत सिखाओ ये ज्ञान की बाते..!!
चंदा की ये बात सुनकर मेरे मन मे छिपी उसकी हटखेली करती ऐसी बहुत सी बातों का सागर उमड़ आया और मै अतीत मे डूब गया,जब मै पाँचवी मे गाँव के स्कूल मे जाता था,छुट्टी होने पर हर रोज चंदा मुझे एक अभिभावक की तरह रिसिव करने स्कूल आती थी,बड़ा अच्छा लगता था,नंगे पैर वाली सांवली सी काया व गोल-मटोल से चेहरे पर खिलखिलाती हँसी देखकर,मैं दौड़ कर चंदा के गले लग जाता था,जैसे दामा(सुदामा) अपने श्याम से मिलता था,फिर हमे वो बणी(हल्का-फुल्का गाँव का जंगल)के रस्ते ले जाती और बेरों की बड़बेरी के पास जाकर कहती तू पीछे हट जा चाँद मैं पत्थर उछाल रही हूँ,आज तुम्हें लाल-चिट बेर खिलाऊँगी,
(चंदा बचपन मे हमे चाँद बुलाया करती,उसी ने चाँद नामकरण किया था मेरा,वो सबको कहती फिरती की मै चाँद की चंदा और ये चंदा का चाँद........!!!)
बेर खाते-खाते रास्ते मे मै पूछता चंदा तुमने चोथी के बाद स्कूल क्यो छोड़ दिया,तुम थी तो क्लास मे मेरा मन लग जाता था,फिर आ जाओ ना स्कूल,मान लो हमारी आ जाओ स्कूल,और मै बालहठी की तरह सारे रास्ते यही रट लगाए रहता,
अब क्या करे ये चदां?तू ही बता चाँद..!बुआ के यहाँ रहती हूँ तो उनका कहना मानना तो पडेगा,बुआ हमें बेटी जैसा प्यार करती हैं और हम उन्हे अम्मा जैसा,बुआ नही चाहती की मै स्कूल जाऊँ,
हम कहेंगे कांता ताई को,हमार बात मान लेगी,नही तो बाबूजी और अम्मा को भेजेंगे,पर इस बार दाख़िले के बख्त तुम्हारा स्कूल जाना पक्का करवा के छोड़ेंगे.....!!!
चंदा:जल्दी चल चाँद बहुत देर हो गई,अम्मा मारेगी,
मैने कह दिया ना अम्मा हम चंदा के बग़ैर स्कूल नहीं जाएँगे,तो बस नही जाएँगे,आप कांता ताई से बात कर लो और चंदा को भी स्कूल जाने की छूट दिलवा दो........चंदा स्कूल जाएगी तो ही ये चाँद जाएगा,
पगलाए गये हो मुआ जो इस ऊमरीया मे ही यो रोग पाल लियो हो---दादी ने माथे की त्योरियाँ चढ़ाते हुए कहा
अम्मा:आप चुप रहेगी,हम हमार लल्ला को आप ही समझा देगे
दादी:का समझाना है,ऊ कलमुही चंदा ने राम जाने का टूना-टोटका किया है हमार बाबू पर,वो तो पाँच बरस बड़ी है और हमार बबुआ मे समझ नाक के बाल बराबर है,
इतने मे बाबूजी ख़ुशी से दौड़ते हुए अंदर आते है,
अरे बाबू ,ओ बाबू ई देखो तुम्हार मामा जी का ख़त आया है,उन्हे बैंक की तरफ़ से रहने के लिए क्वार्टर मिल गया है,कह रहे हैं कल ही अमित को ले आओ यहाँ,बाबू शहर मे पढ़ोगे तो दुई अक्षर इंया से ज़्यादा सीखोगे और फिर नौकरी भी अच्छी मिलेगी,हम तुम्हें कल ही लेकर चलेंगे शहर.......!!!
अरी भागवान सुनती हो,कहाँ हरदम ई छड़ी हाथ में उठाए मास्टरनी बनी फिरती हो,रहने दो ऐसो भाग्य ना है तुम्हारो,तुहार तो कर्म फूटे थे पहिले से,साथ-साथ हमार भी फोड़ दिए यहाँ आकर,जाओ जाकर कुछ बना दो कल के लिए,साले साहब के यहाँ जा रहे हैं,ख़ाली हाथ गये तो जगहँसाई होगी......!!!
ओ..हो....हो बड़े आए लफटिडेन्ट!! जैसे हमार आने से पहले तुम्हारे यहाँ राजशाही चलती थी ना,जो हमने आते ही सबअहु चौपट कर दिया,
और....औ..र.......तुम्हें हमार ई छड़ी से का मतलब,हमार छड़ी हम जब चाहे जैसे चाहे घुमाए,तुम कौन होते हो रोकने वाले......हाँ!!
और महारानी है ई घर की,काहे पदवी घटाए रहे हो मास्टरनी कहकर......आज तो कह दिये हो आगे...........!!!
अरी हो महारानी काहे जगत सर पर उठाए रखो है,ज़रा साँस ले ले और ऊ हमार आँख मे दवाई डाल भीतर से लाकर,क्या बच्चों की तरह लड़ रही है,दस बरस के बेटे की माँ होई गयी हो बचपना अब तक रही रहयो स....!!
तुम भी अम्मा हर बख्त अपने ही सुपुत्र की पैरवी करती हो,हम कौन होते है यहाँ......!!
अचानक चंदा ने हाथ पकड़ा और मुझे झकझोर कर कहा"बाबू ,औ बाबू कहाँ सो गये का चलते चलते,आ गया घर आगे कहाँ जा रहे थे,ई तो हम थे जो पकड़ लिया वरना कहीं ओर ही जमावड़ा लगाते.......!!
मै सहसा अतीत से निकल कर वर्तमान मे आया तो पता चला जिस चौक मे खड़ा हूँ अब वो पक्का हो गया है,सामने मेरे घर के दरवाज़े पर कुछ सफ़ेद चाक से लिख रखा है,मै कुछ पूछने की चेष्टा करता इस से पहले चंदा ही बोल पड़ी,क्या देख रहे हो आगनबाड़ी वाली बहन जी लिख कर गयी है ई सब,आई थी पूछने की तोहार घर मे कितने बच्चे है...!!
घर पर ताला देखकर मैने चंदा की तरफ़ गर्दन घुमाई,फिर कुछ पूछने से पहले वो बोल पड़ी,अम्मा बाबा दोनो खेत गए है.....!!
खेत......??मैने आश्चर्य से फिर चंदा को देखा,इस बार चंदा ने बोलने की बजाए ऐसे भाव चेहरे पर प्रदृशित किये मानो इशारों मे मुझसे ही पूछ रही हो तुम ही बताओ क्यो गये अम्मा बाबा खेत मे???
मैने चंदा को मौन देख पहले बोलने का निर्णय लिया,चंदा बता तो सही.....!!
चंदा:दोनो खेत मे बाजरा काटने गए है,
बाजरा काटने गये है.....???और तू मुझे यहाँ ले आई,मै अभी जाता हूँ उनकी मदद के लिए,मै ज्यों ही चला चंदा ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली "रूक जाओ चाँद"
(रूक जाओ चाँद--ये शब्द सुनते ही मेरे क़दम आप ही स्थिल पड़ गए,नब्ज़ रूक सी गई,दिल जौर-जौर से धड़कने लगा,आँखो के आगे सहसा ही एक बस,एक पीपल का पेड़ ,पास से गुज़रती कुछ बकरियाँ ,स्कूल जाते छोटे-छोटे बच्चे की आवाज़ें,व बार-बार सीटी बजाते हुए व्यक्ति की काल्पनिक प्रतीमा उभर आई,पर वह काल्पनिक होते हुए भी ऐसी मालूम पड़ रही है जैसे कालचक्र की गति उलटी हो गई हो और मै कालगति के प्रभाव से कालांतर मे उस जगह जा पहुँचा हूँ जहाँ ये सारी घटनाएँ मेरे चारों तरफ़ सजीव रूप से अभी चल रही है,इन सब के बीच कोई मुझे बार-बार यही वाक्य बोल रहा है--रूक जाओ चाँद,रूक जाओ चाँद,मत जाओ चाँद......!!
इस आवाज ने मुझे अंदर तक क्षीण कर दिया है और मै दीमाग व आखो पर जौर देकर उस आवाज को पहचानने की कोशिश कर रहा हूँ,अंत मे मुझे एक साँवली सी,खुले बालों वाली,जिसका दुपट्टा शायद कही रास्ते मे गिर गय होगा,नंगे पैर मेरी तरफ़ दौड़ती हुई प्रतीत होती है,उसके पास आने पर मेरे मूह से सहसा कुछ शब्द निकलते है"हाँ चंदा मै नही जाऊँगा,तुम्हें छोड कर नही जाऊँगा......!!
इस बार फिर चंदा ने मुझे झकझोर कर उस अतीत की गहरी नींद से जगाया,बाबू...बाबू?
क्या हुआ?
मैने कहा कुछ भी तो नहीं,फिर चंदा गहरे विचार मे डूब कर सहसा पूछ बैठी तब से हमार नाम लेकर काहे शौक़ मचा रहे थे,हम इतनी देर से तुम्हें पुकार रहे थे सुन काहे नही रहे थे हमार बात,
थोड़ी देर दोनो मे ख़ामोशी छा जाती है....!!
चदा: अम्मा कह कर गयी है,बाबू आए तो ये घर की चाबी दे देना और कहना शाम होने तक घर मे ही आराम करे,हम पहर ढलने से पहले आ जाएँगे,
चंदा घर का दरवाज़ा खोलती है,मै अब भी आवाक सा गली मे ही खड़ा रहता हूँ,चदां अदर जौर से चिल्लाती है"कौनो गौरी मैम ने टूना-टोटका कर दिया का,जो ये अजीब-अजीब हरकतें कर रहे हो,अब घर मे भी तुम्हें प्रेत दिखाई देत है का.....!!
हाँ एक प्रेत तो दिखाई........ईईईई...!!
वाक्य बीच मे ही छोड मैने चंदा को आलिंगन मे भरना चाहा........!!!
चंदा मुझे अपनी ओर आता देख पूर्वानुमान लगाकर,मुझे अँगूठा दिखाती हुई आँगन मे भाग गई,और दोड़ती-दौड़ती एक ही साँस मे बोली ई प्रेत तुम्हारे हाथ नही आने वाला,गाँव के बेशक हो पर आदमी की नियत भंलीभांति जान लेते है,ये कहकर चंदा ने हँसते हुए अपना दुपट्टा संभाला जो शायद हमारी धिगाँ-मस्ती मे उलट-पुलट गया था.......!!जरा मन पर क़ाबू रखो,इतने रसिक मत बने.....चंदा आज फिर मुझे एक अभिभावक की तरह समझा रही थी,चंदा की ये हरकत देखकर मेरे मूह से अनायास ही कुछ पंक्तियाँ निकल आई---
मालूम है मुझे हद अपनी दोस्ती की ज़ालिम
बस तू अपनी मटकती आँखो को संभाल ले
खुदा कसम नहीं करने दूँगा दिल को बग़ावत
बस तू अपने इस गुलाबी दुपट्टे को सवार ले
जब भी देखता हूँ तुझे,आँखे बेईमान हो जाती है
बेईमानी दिल मे न आने दूँगा बस तू इतना जान ले
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